कॉक्लिअर इम्प्लांट यह प्रोस्थेस्टिक उपकरण है, जिसका सर्जरी द्वारा भीतरी कर्ण के कॉकलिया में रोपण किया जाता है। जिन बच्चों एवं युवकों को तीव्र से लेकर अति तीव्र श्रवण दोष है तथा जिनको निम्न गति (स्लोपिंग) श्रवण दोष है और श्रवण यंत्र का कोई लाभ नहीं होता है, मगर जिनकी श्रवण नसें सही रुप से कार्यरत है उन्हें कॉक्लिअर इम्प्लांट का लाभ होता है । जिस तरह श्रवण यंत्र, आवाज को बढ़ाकर कान में पहुंचाने में मदद करता है उसी तरह कॉक्लिअर इम्प्लांट कान के कॉकलिया के नसों में विद्युत उत्तेजना को सीधा पहुंचाने में सहायता करता है।
कॉक्लिअर इम्प्लांट किस तरह कार्य करता है ?
कॉक्लिअर इम्प्लांट बाहर से पहनने का यंत्र है । जिसमें मायक्रोफोन, स्पीच प्रोसेसर एवं ट्रान्समिटिंग कॉईल के साथ एक अन्तर्गत उपकरण भी होता है, जो स्कल (खोपड़ी) तथा कॉकलिया में सर्जरी द्वारा रोपण किया जाता है । अंर्तगत उपकरण में रिसीवर स्टिम्युलेटर पैकेज और इलेक्ट्रोड्स शामिल है ।
कॉक्लिअर इम्पलांट उपकरण का ब्योरा निम्न प्रकार है ।
- अ) मायक्रोफोन
- ब) हेडसेट
- क) स्पीच प्रोसेसर
- ड) ट्रान्समिटिंग कॉईल
- इ) रिसीवर स्टिम्युलेटर पैकेज
- फ) इलेक्ट्रोडस और कॉकलिया
- ग) कॉकलिया
- ह) श्रवण नस/तंत्रिका (ऑडिटरी नर्व)
कॉक्लिअर इम्प्लांट का कार्य -
- कान में लगा हुआ माइक्रोफोन आवाज को पकडता है ।
- मायक्रोफोन आवाज को विद्युत उर्जा में परिवर्तित करता है । यह इलेक्ट्रिकल सिग्नल एक केबल के माध्यम से स्पीच प्रोसेसर तक पहुंचते है ।
- स्पीच प्रोसेसर शरीर पर लगा हुआ या कान पर लगा हुआ यंत्र होता है । वह आवाज को अंकीय संकेतों को विश्लेषित तथा निर्देशित करता है। यह सांकेतिक प्रक्रिया प्रोसेसर द्वारा की जाती है जो,प्रोग्राम किस तरह बनाया जाता है, उस पर निर्भर है । स्पीच प्रोसेसर ये तय करता है कि कॉकलिया के अन्दर कितना विद्युत प्रवाह छोडे ताकि यंत्र लगाने वाली व्यक्ति आवाज को सुन सके । स्पीच प्रोसेसर में विभिन्न प्रकार की वाक् सांकेतिक प्रणाली उपलब्ध होती है ।
- संकेतवाले/युक्त सिग्नल स्पीच प्रोसेसर से निकल कर सिर पर पहनी/बिठायी गई ट्रान्समिटिंग कॉइल में भेजे जाते है । ये कॉइल उसकी जगह पर मैग्नेट से बिठायी जाती है । ट्रान्समिटिंग कॉइल, कोडेड सिग्नल्स को त्वचा द्वारा रेडियो फ्रिक्वेन्सी लिंक के माध्यम से रिसीवर स्टिम्युलेटर पैकेज में पहुँचाती है/प्रेषित करती है ।
- रिसीवर स्टिम्युलेटर पैकेज शल्यचिकित्सा द्वारा (बिल्कुल कान के पीछे वाले) स्कल में स्थित मस्टॉइड बोन में फिट किया जाता है/बिठाया जाता है । रिसीवर स्टिम्युलेटर पैकेज में मैग्नेट होता है, जिसके कारण ट्रान्समिटिंग कॉइल और रिसीवर त्वचा द्वारा बिना किसी सीधे संपर्क किए, एक दूसरे से मिल जाते है ।
- रिसीवर स्टिम्युलेटर पैकेज से सिग्नल्स इलेक्ट्रोड ऑरे में भेजे जाते है /प्रेषित किये जाते है, जो शल्यचिकित्सा द्वारा कॉक्लिया के स्केला टिम्पनाय में बिठाया जाता है । (नीचे इलेक्ट्रोड ऑरे का चित्र दर्शाया गया है । चित्र में ब्लैक बैण्ड दिखाए है वो इलेक्ट्रोड है ।)
- इलेक्ट्रोड ऑरे से प्राप्त स्टिम्युलेशन, कॉक्लिया में पहुँचने वाली तंत्रिका के स्टिम्युलेशन को आगे बढ़ाता है । इसके फलस्वरुप ध्वनि/आवाज की संवेदना/अनुभूति प्राप्त होती है ।
कोई व्यक्ति इम्प्लांट की जरुरत का मूल्यांकन किस तरह कर सकता है ?
बच्चा या वयस्क कॉक्लिअर इम्प्लान्ट के लिए योग्य है यह निर्णय तय करने से पहले उनका समग्र रुप से मूल्यांकन/निर्धारण किया जाना जरुरी है । इसमें निम्न मद शामिल है ।
- ऑडियोलॉजिकल असेसमेन्ट जिसमें श्रवण यंत्रों से प्राप्त लाभ का मूल्यांकन भी शामिल है ।
- वाचा एवं भाषा मूल्यांकन
- मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन
- क्लाइंट एवं परिवार की अपेक्षाओं/उम्मीदों का मूल्यांकन
- चिकित्सा जाँच (मेडिकल इन्वेस्टिगेशन्स)
- रेडियोलॉजिकल इनवेस्टिगेशन (सीटी स्कैन एवं एम आर आइ)
- न्यूरोलॉजिकल मूल्यांकन
यह सभी विस्तृत मूल्यांकन के पश्चात ही उम्मीदवारी निर्धारित की जा सकती है । यदि बच्चे या वयस्क व्यक्ति को श्रवण यंत्रों से पर्याप्त लाभ हो रहा है और उन्हें कॉक्लिअर इम्प्लान्ट की आवश्यकता नहीं है । यह स्पष्ट है कि कॉक्लिअर इम्प्लान्ट कार्यक्रम सफल होने के लिए पेशेवर व्यक्तियों के दल की आवश्यकता है । इस टीम में ऑडियोलॉजिस्ट एवं स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट, ईएनटी सर्जन, बच्चे हो तो पीडियाट्रिशन, न्यूरोलॉजिस्ट, स्पेशल एज्युकेटर, साइकोलॉजिस्ट एवं सोशल वर्कर शामिल है । अन्य प्रोफेशनल्स् को उनकी सेवाएं प्रदान करने हेतु बुलाया जा सकता है यदि विशिष्ट पेशन्ट के लिए उनकी जरुरत हो ।
कॉक्लिअर इम्प्लांट सर्जरी किस तरह होती है ?
कॉक्लिअर इम्प्लांट सर्जरी के लिए अढ़ाई घंटों का समय लगता है । सर्जन कान के पिना के पीछे एक छेद करके कॉक्लिआ के अन्दर इलेक्ट्रॉडस तथा कान के पीछेवाले मास्टोईड हड्डी में रिसीवर स्टिम्युलेटर पैकेज का रोपण करते है । रुग्ण को शल्यचिकित्सा के बाद या एक या दोन दिन तक हॉस्पिटल में रहना पडता है ।
सर्जरी के बाद क्या होता है ?
सर्जरी के बाद रुग्ण को जख्म ठीक होने तक रुकना पडता है । यह समय दो से तीन हप्ते का हो सकता है । इस समय के दौरान कान का बाहरी हिस्सा सुनाई देने में सक्षम न होने के कारण सर्जरी किए हुए व्यक्ति को कॉक्लिअर इम्प्लांट द्वारा सुनाई देता है । यह हिस्सा ठीक होने के बाद प्रोगाम और प्रोसेसर को पहली बार कार्यान्वित किया जाता है । इसे स्वीच ऑन कहते है । स्वीच ऑन के समय रुग्ण के स्पीच प्रोसेसर को मैपिंग सॉफ्टवेयर वाले संगणक से जोडा जाता है । प्रोसेसर रुग्ण द्वारा पहना जाता है और ट्रासमिटींग कॉइल को सिर पर लगायी जाती है ताकि अन्दरुनी यंत्र के साथ संप्रेषण हो सके । श्रवण विशेषज्ञ द्वारा मापन का काम किया जाता है । कोई भी असुविधा के बिना जिससे व्यक्ति को आवाज सुनने के लिए कितना करंट आवश्यक है इसका निर्णय लें सके । मापन समाप्त होने के बाद यंत्र को स्वीच ऑन करते है । मापन को स्पीच प्रोसेसर में संग्रहित किया जाता है तथा हरेक अगले मापन सत्र में उसे अपग्रेड किया जाता है । प्रारंभ में, पहले कुछ महीनों में इम्प्लांट में भेजे जाने वाले संकेतों में सुधार लाने के लिए उस व्यक्ति को बार-बार मैपिंग सत्र की आवश्यकता होती है । साथ ही सुनने की क्षमता को बढ़ाने के लिए नियमित प्रशिक्षण आवश्यक है । उसके रिहैबिलिटेशन में विशेष शिक्षक और वाक् एवं भाषा विशेषज्ञ की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। कॉक्लिअर इम्प्लांट प्रोफाऊंड श्रवण दोष से बाधित व्यक्ति को हल्कीसी आवाज सुनाई देने में मदद करता है । फिर भी उसे श्रवण संकेतों को समझने के लिए प्रशिक्षण की जरुरत होती है । बच्चों के बारे में उनकी उम्र के हिसाब से पर्याप्त वाक् एवं भाषा कुशलता के विकास के साधन के रुप में सुनने की कुशलता के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाता है । कॉक्लिअर इम्प्लांट श्रवण क्षमता को सामान्य नहीं बनाता है । इसलिए इसके अच्छे परिणाम/लाभ के लिए इम्प्लांट पश्चात सुनने योग्य बनाने हेतु प्रशिक्षण देना बहुत ही महत्वपूर्ण है । इम्प्लांट की सफलता भी अनेक घटकों पर निर्भर है, जैसे किस आयु में इम्प्लांट किया गया, इम्प्लांट के पूर्व श्रवण एवं वाक् भाषा संबंधी स्थिति और इम्प्लांट वाले व्यक्ति व उसके परिवार की मानसिकता/प्रोत्साहन आदि है ।
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